छत्तीसगढ़

पीड़ित किसान को अब तक नहीं मिला समर्थन मूल्य का पैसा, फर्जीवाड़े के बावजूद सहकारी बैंक और विभाग की चुप्पी

पीड़ित किसान को अब तक नहीं मिला समर्थन मूल्य का पैसा, फर्जीवाड़े के बावजूद सहकारी बैंक और विभाग की चुप्पी

गरियाबंद, 30 मई – जिले के नवीन शुक्लीभांटा गांव निवासी किसान खेमा पांडे पिछले तीन महीने से समर्थन मूल्य में बेचे धान की राशि के लिए दफ्तर और बैंक के चक्कर काट रहे हैं। 31 जनवरी को उन्होंने 255.20 क्विंटल धान बेचा था, जिसकी 7.91 लाख रुपये की राशि देवभोग सहकारी बैंक के उनके खाते में जमा हुई, लेकिन यह पैसा उन्हें नहीं मिला। फर्जी हस्ताक्षर के जरिए गोहरा पदर शाखा से पूरी रकम निकाल ली गई।

किसान ने 29 अप्रैल को जनदर्शन में कलेक्टर भगवान सिंह उईके को आवेदन देकर मामले की शिकायत की थी। कलेक्टर ने जिला सहकारी उपपंजीयक को कार्रवाई के निर्देश दिए, लेकिन सहकारिता विभाग ने अब तक जांच शुरू नहीं की है। जबकि देवभोग ब्रांच की जांच में फर्जीवाड़ा प्रमाणित हो चुका है। बैंक रिकॉर्ड में यह भी दर्ज है कि किसान के हस्ताक्षर स्पेसिमेन से मेल नहीं खा रहे थे और खाता देवभोग ब्रांच में होने के बावजूद इंटर ब्रांच से विड्रॉल किया गया, जो नियम विरुद्ध है।

खेमा पांडे का कहना है कि उनके परिवार पर अब भी 1.57 लाख का कर्ज बाकी है और पूरी उपज की राशि गवां देने के कारण वे नई फसल की तैयारी भी नहीं कर पा रहे। आर्थिक तंगी के चलते घर में रोज विवाद हो रहे हैं।

सहकारी बैंक का गैरजिम्मेदार रवैया

मामले की जानकारी हेड ऑफिस को 12 अप्रैल को दे दी गई थी, फिर भी जिम्मेदारी तय नहीं की गई और न ही किसान को राशि दिलाने की पहल हुई। देवभोग ब्रांच ने अपने स्तर पर जांच पूरी कर रिपोर्ट भेज दी थी, लेकिन जिला सहकारी बैंक और सहकारिता विभाग की निष्क्रियता सवालों के घेरे में है।

कई अन्य किसान भी हुए ठगी का शिकार

जानकारी सामने आई है कि खेमा पांडे जैसे ही देवभोग ब्रांच के 6 अन्य खाताधारकों के करीब 42 लाख रुपये की निकासी फर्जी तरीके से की गई है। गोहरा पदर ब्रांच के कर्मचारी पीड़ित किसान से डेढ़ लाख में मामला सुलझाने की बात भी कह चुके हैं। कांडेकेला की नमिता और माहुलकोट के किसान यशवंत मांझी के खातों से भी रकम गायब होने के मामले दबा दिए गए हैं।

सीईओ ने मैनेजर हटाया, लेकिन एफआईआर नहीं

ठगी के बढ़ते मामलों को देखते हुए जिला सहकारी बैंक रायपुर के सीईओ ने 16 अप्रैल को गोहरा पदर ब्रांच मैनेजर नयन सिंह ठाकुर को हटाया और क्लर्क सुरेश साहू व एकाउंटेंट दीपराज मसीह को निलंबित किया गया, लेकिन किसी के खिलाफ अपराध पंजीबद्ध नहीं किया गया। केवल खानापूर्ति कर दी गई।

जांच की धीमी रफ्तार

सुशासन तिहार में खेमा पांडे ने दोबारा आवाज उठाई, जिसके बाद जांच अधिकारी नियुक्त कर 28 मई को गोहरा पदर भेजा गया। बैंक रिकॉर्ड और पीड़ित के बयान लिए गए हैं। लेकिन जांच रिपोर्ट अब तक सार्वजनिक नहीं की गई है। जिला सहकारी बैंक के नोडल अधिकारी शिवेश मिश्रा ने इस मामले पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया।

कृषि संकट की ओर किसान, सरकार की चुप्पी खतरनाक

खेमा पांडे और उनके जैसे किसानों के साथ हो रही धोखाधड़ी और सरकारी तंत्र की सुस्ती, शासन की किसान हितैषी नीतियों पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करती है। समय रहते यदि ठोस कार्रवाई नहीं हुई, तो ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर इसका गहरा असर पड़ सकता है।

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