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आपातकाल की 50वीं बरसी: जब तुर्कमान गेट पर टूटा था ‘तानाशाही’ का कहर, अब भी जिंदा हैं जख्म

आपातकाल की 50वीं बरसी: जब तुर्कमान गेट पर टूटा था ‘तानाशाही’ का कहर, अब भी जिंदा हैं जख्म

रायपुर/दिल्ली, 25 जून 2025
आज से ठीक 50 साल पहले, 25 और 26 जून 1975 की दरम्यानी रात भारत के इतिहास में ऐसा काला अध्याय दर्ज हुआ, जिसे आज भी लोकतंत्र की सबसे बड़ी चोट के रूप में याद किया जाता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत देश में आपातकाल की घोषणा की थी, जो 21 मार्च 1977 तक यानी पूरे 21 महीने चला। राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने प्रधानमंत्री की सिफारिश पर यह निर्णय लिया, जिसे बाद में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने अनुमोदित किया।

जब लोकतंत्र हुआ था कैद, और तानाशाही चरम पर

आपातकाल के दौरान प्रेस की स्वतंत्रता कुचली गई, विरोध करने वाले राजनीतिक नेताओं को जेल में ठूंस दिया गया और आम नागरिकों के मौलिक अधिकार छीन लिए गए। यह वह दौर था जब सत्ता बचाने के लिए तानाशाही फैसले लिए गए। इसी में एक बदनाम निर्णय था—जबरन नसबंदी अभियान। दिल्ली के तुर्कमान गेट इलाके में इस फैसले ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया।

तुर्कमान गेट: जहां आज भी सांस लेते हैं इमरजेंसी के जख्म

दिल्ली के ऐतिहासिक तुर्कमान गेट पर इमरजेंसी के दौरान बर्बरता की पराकाष्ठा देखी गई। संजय गांधी के नेतृत्व में चलाए गए नसबंदी अभियान ने हजारों परिवारों को उजाड़ दिया। सैकड़ों घर बुलडोजर से ढहा दिए गए। उस समय 75 वर्षीय रजिया बेगम, जो खुद यूथ कांग्रेस से जुड़ी थीं, बताती हैं कि नसबंदी कराने वालों को घी, रेडियो और ₹250 दिए जाते थे। पर ये मुआवजा उनके टूटे घरों और बिखरे सपनों को नहीं जोड़ सका।

गोली, गैस और गिरफ्तारी का खौफनाक मंजर

कॉलेज छात्र शाहिद गंगोई उस दिन को याद करते हैं जब उन्हें स्कूल में बताया गया कि उनका घर गिराया जा रहा है। घर पहुंचने तक सब कुछ ध्वस्त हो चुका था। उनके पिता नमाज पढ़ते हुए गिरफ्तार कर लिए गए। मोहल्लों में पुलिस की गोलीबारी, आंसू गैस, चीख-पुकार और छिनता सुकून – यही बना था उस दौर का दृश्य।

नंद नगरी: बसाया गया लेकिन उजाड़ दिया गया भविष्य

जिन्हें उजाड़ा गया, उन्हें दिल्ली के बाहरी इलाके नंद नगरी में बसाया गया – जहां न पानी था, न शौचालय और न ही कोई ठिकाना। महिलाएं झुंड में बाहर जाती थीं क्योंकि डर हर वक्त साथ चलता था।

50 साल बाद भी पीछा नहीं छोड़ रही कांग्रेस से जुड़ी यादें

आज जब आपातकाल को 50 साल पूरे हो चुके हैं, यह दौर अब भी कांग्रेस पार्टी का पीछा नहीं छोड़ रहा है। इंदिरा गांधी के सत्ता-सुरक्षा के लिए लिए गए तानाशाही निर्णयों की आलोचना आज भी जारी है। वह इमरजेंसी आज भी लोकतंत्र के सबसे गहरे घाव के रूप में दर्ज है।

निष्कर्ष:

तुर्कमान गेट के खंडहर, वहां के बुजुर्गों की झुकी आंखें और नंद नगरी की वीरान गलियां आज भी गवाही देती हैं उस दौर की—जब संविधान को कुचला गया था, और जनता की आवाज को बंदूक की नली से चुप कराया गया था।

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