छत्तीसगढ़

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर छत्तीसगढ़ पर भी: 9 विधेयकों पर आ सकता है फैसला, राजभवन के पाले में गेंद

रायपुर। सुप्रीम कोर्ट द्वारा मंगलवार को दिए गए ऐतिहासिक फैसले का असर अब छत्तीसगढ़ की राजनीति में भी दिखाई दे सकता है। कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल को निर्देश देते हुए कहा कि राजनीतिक कारणों से विधानसभा से पारित विधेयकों को लंबित रखना संविधान सम्मत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि विधेयकों को लंबे समय तक रोककर नहीं रखा जा सकता और या तो उन्हें स्वीकृत माना जाएगा या फिर तत्काल विधानसभा को पुनर्विचार के लिए लौटाया जाना चाहिए।

इस फैसले के बाद अब छत्तीसगढ़ में भी राजभवन में लंबित पड़े विधेयकों को लेकर हलचल तेज हो सकती है। जानकारी के अनुसार, राज्य में पिछले पांच विधानसभा कार्यकालों से पारित 9 विधेयक अब भी राज्यपाल और राष्ट्रपति भवन में लंबित हैं।

इनमें कुछ बेहद अहम और राजनीतिक रूप से संवेदनशील विधेयक शामिल हैं। जोगी शासनकाल का धर्म स्वातंत्र्य विधेयक, रमन सरकार के समय रामविचार नेताम द्वारा प्रस्तुत धर्म स्वातंत्र्य विधेयक, भूपेश बघेल सरकार का ओबीसी-अजा आरक्षण विधेयक, कृषि कानूनों से जुड़े तीन संशोधन विधेयक, कुलपति नियुक्ति में राज्यपाल के अधिकारों में कटौती करने वाला विधेयक और चिटफंड कंपनियों पर नियंत्रण से जुड़ा विधेयक अभी भी निर्णय की प्रतीक्षा में हैं।

सबसे चर्चित विधेयकों में आरक्षण और राज्यपाल के कुलाधिपति अधिकारों में कटौती से संबंधित विधेयक रहे, जिन्हें अनुसुइया उइके के कार्यकाल से अब तक रोका गया है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद अब यह संभावना जताई जा रही है कि राज्यपाल को इन विधेयकों पर या तो अंतिम निर्णय देना होगा या उन्हें पुनर्विचार के लिए विधानसभा को लौटाना होगा। यदि ऐसा होता है, तो राज्य सरकार इन विधेयकों को संशोधित कर दोबारा पारित कर सकती है।

यह फैसला छत्तीसगढ़ की राजनीति में बड़ा मोड़ ला सकता है और राजभवन व राज्य सरकार के बीच लंबे समय से जारी खींचतान को नए आयाम दे सकता है।

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