वनाधिकार कानून के क्रियान्वयन को लेकर आदिवासी संगठनों का मुखर विरोध, मुख्यमंत्री से हस्तक्षेप की मांग


वनाधिकार कानून के क्रियान्वयन को लेकर आदिवासी संगठनों का मुखर विरोध, मुख्यमंत्री से हस्तक्षेप की मांग
बस्तर!
बस्तर जिले में बुधवार को वनाधिकार कानून (FRA, 2006) के प्रभावी क्रियान्वयन की मांग को लेकर जनसंगठनों, ग्राम सभाओं और आदिवासी समुदायों ने ज़ोरदार आवाज़ उठाई। सर्व आदिवासी समाज एवं ग्राम सभा जिला संघ के नेतृत्व में 36 पंचायतों के सरपंच, 4 जनपद सदस्य और 32 ग्राम सभाओं के प्रतिनिधियों ने संयुक्त रूप से कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा, जो मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय के नाम संबोधित था।
ज्ञापन में 15 मई 2025 को छत्तीसगढ़ वन विभाग द्वारा जारी उस आदेश को तत्काल निरस्त करने की मांग की गई है, जिसमें विभाग ने खुद को वनाधिकार कानून की “नोडल एजेंसी” घोषित किया है। जनसंगठनों ने इस आदेश को असंवैधानिक और आदिवासी विकास विभाग के अधिकार क्षेत्र का उल्लंघन बताते हुए गंभीर आपत्ति दर्ज की है।
ग्रामसभाओं की स्वायत्तता पर हमला: जनसंगठनों का आरोप
संगठनों ने कहा कि यह आदेश ग्रामसभाओं की स्वायत्तता और सामुदायिक वन संसाधन अधिकार (CFR) की भावना के खिलाफ है। वन विभाग द्वारा सुप्रीम कोर्ट के गोदावर्मन मामले का एकतरफा हवाला देकर केवल “वर्किंग प्लान आधारित वैज्ञानिक प्रबंधन” को मान्यता देना, ग्रामसभा द्वारा तैयार की गई वैकल्पिक योजनाओं को नकारने जैसा है।
जनप्रतिनिधियों ने आरोप लगाया कि यह आदेश एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य ग्रामसभाओं की भूमिका को कमज़ोर करना है, जबकि CFR के तहत उन्हें वन प्रबंधन में मुख्य भूमिका दी गई है।
मुख्य मांगें इस प्रकार हैं:
- 15 मई 2025 के आदेश को निरस्त किया जाए और स्पष्ट किया जाए कि FRA की नोडल एजेंसी केवल आदिवासी विकास विभाग रहेगा।
- ग्रामसभाओं को सशक्त किया जाए, उन्हें तकनीकी एवं वित्तीय सहायता मिले, और उनकी प्रबंधन योजनाओं को विधिवत मान्यता दी जाए।
- लंबित व्यक्तिगत वनाधिकार दावों का पारदर्शी और समयबद्ध निपटारा किया जाए, विशेषकर PVTGs व एकल महिलाओं को प्राथमिकता दी जाए।
- ग्रामसभा की बिना सहमति कोई कार्य न किया जाए, जबरन बेदखली पर रोक लगे और CFR वाले क्षेत्रों में JFMC/VSS को भंग कर अधिकार ग्रामसभा को हस्तांतरित किए जाएं।
- CFR क्षेत्रों को अलग कानूनी श्रेणी ‘सामुदायिक वनाधिकार वन क्षेत्र’ के रूप में घोषित किया जाए।
- खनन और जल संसाधनों पर ग्रामसभा की स्वायत्तता सुनिश्चित की जाए, और DMF को ग्रामसभा के प्रति उत्तरदायी बनाया जाए।
- टाइगर रिज़र्व और अभयारण्यों में भी ग्रामसभा प्रबंधन को मान्यता मिले और विस्थापनरहित वनाधिकार सुनिश्चित किया जाए।
जन संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि सरकार द्वारा इस आदेश को वापस नहीं लिया गया, तो यह संविधान प्रदत्त आदिवासी स्वशासन, जलवायु-संवेदनशील वन प्रबंधन और ग्रामसभाओं के अधिकारों पर सीधा प्रहार होगा।
ज्ञापन देने वाले प्रतिनिधियों ने मुख्यमंत्री से शीघ्र बैठक की मांग की है, ताकि FRA और PESA जैसे कानूनों के प्रभावी और न्यायसंगत क्रियान्वयन की दिशा में ठोस नीति बनाई जा सके।
यह विरोध एक व्यापक और जागरूक आदिवासी आंदोलन का संकेत है, जो अपने संवैधानिक अधिकारों और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा के लिए एकजुट हो रहा है।