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सुशासन तिहार के बीच बकावंड ब्लॉक की तारेका पंचायत का अनदेखा बुडरा पारा: पुलिया विहीन रास्ते से त्रस्त ग्रामीण, हर साल जंगल काटने को मजबूर

“सुशासन तिहार के बीच बकावंड ब्लॉक की तारेका पंचायत का अनदेखा बुडरा पारा: पुलिया विहीन रास्ते से त्रस्त ग्रामीण, हर साल जंगल काटने को मजबूर”

“बिना पुलिया के बुडरा पारा की त्रासदी:हर साल जंगल काट कर बनती है अस्थायी राह, सुशासन तिहार के बीच उठे सवाल”

(डमरू कश्यप) बस्तर, बकावंड! छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में सुशासन तिहार कार्यक्रम एक जन-जागरण और समाधान केंद्रित अभियान के रूप में सामने आया है। इस कार्यक्रम के माध्यम से प्रदेश के कोने-कोने तक शासन की योजनाएं पहुँचाई जा रही हैं और आमजन की शिकायतों का त्वरित निराकरण भी किया जा रहा है। स्वयं मुख्यमंत्री साय हेलीकॉप्टर से अचानक विभिन्न जिलों और ब्लॉकों में उतरकर जमीनी हकीकत का जायजा ले रहे हैं, और लापरवाह अधिकारियों को कड़ी चेतावनी दे रहे हैं: “काम करो या निलंबन के लिए तैयार रहो।”

इस उज्ज्वल तस्वीर के बीच बस्तर जिले के बकावंड ब्लॉक की तारेका पंचायत एक गंभीर समस्या से जूझ रही है, जो सुशासन तिहार की आत्मा पर सवाल खड़ा करता है।

“पुलिया नहीं, तो फसल नहीं: बुडरा पारा के नाम एक करुण कहानी”

तारेका पंचायत की जनसंख्या लगभग 1000 है। पंचायत में चार पारा हैं – तलपारा, माझीपारा, ऊपरपारा और हाल ही में विकसित बुडरा पारा। बुडरा पारा जाने के रास्ते में कोई पक्का पुलिया नहीं है। यही नहीं, ग्रामीणों के खेत भी इसी पार में हैं, और खेत तक पहुँचने के लिए उन्हें हर साल 10-20 पेड़ काटकर अस्थायी लकड़ी की पुलिया बनानी पड़ती है।

यह न सिर्फ पर्यावरणीय नुकसान है, बल्कि ग्रामीणों की जान और फसल के लिए खतरे की घंटी भी है। बरसात में जब पानी भरता है, तो लकड़ी की पुलिया बह जाती है और ग्रामीण खेत नहीं जा पाते। इस वर्ष यदि पुलिया का निर्माण नहीं हुआ, तो कई किसान खेती ही नहीं कर पाएंगे।

“जनप्रतिनिधियों को कई बार ध्यानाकर्षण के बावजूद समाधान नहीं”

ग्रामीणों के अनुसार, कई बार सरपंच, जनपद सदस्य, बस्तर सांसद और विधायक तक से पुलिया निर्माण की मांग की जा चुकी है। सुशासन तिहार के दौरान भी इस मुद्दे को स्पष्ट रूप से उठाया गया। लेकिन आज तक कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई। यह विडंबना है कि निर्विरोध रूप से चुने गए सरपंच के नेतृत्व में भी विकास के ऐसे जरूरी काम अटक गए हैं।

“जिम्मेदारी किसकी? और चुप्पी क्यों?

यह पंचायत जनपद मुख्यालय से लगभग 40-50 किलोमीटर दूर स्थित है, और अंतिम सीमा पर पड़ती है – जहाँ कोंडागांव जिला व माकड़ी ब्लॉक जुड़ते हैं। घने जंगल और दूरस्थता के कारण यहाँ अधिकारियों की उपस्थिति नगण्य है।

इस बीच, एक बड़ा सवाल यह उठता है कि सुशासन तिहार जैसे महत्त्वाकांक्षी कार्यक्रम के आयोजन के बावजूद तारेका पंचायत के बुडरा पारा जैसी बुनियादी समस्याओं का समाधान क्यों नहीं हो पा रहा? क्या यह कार्यक्रम केवल औपचारिकता भर रह गया है?

“स्थानीय नेतृत्व मौन क्यों?

ग्रामीणों ने विशेष रूप से सरपंच पति जोगेंद्र बघेल, उपसरपंच लखमू मंडावी, कोटवार मानकू नेताम, पटेल असमान बघेल, पंचगण चंद्रा पोयम, लिमबत्ती बघेल, दसाय बघेल आदि का उल्लेख करते हुए कहा कि सब जानते हैं – लेकिन कोई आगे नहीं आ रहा।

“क्या उम्मीदें रहेंगी अधूरी?

तारेका पंचायत के बुडरा पारा में पुलिया निर्माण मात्र एक ढांचागत विकास नहीं, बल्कि किसानों की आजीविका, पर्यावरण की सुरक्षा, और शासन की साख का मामला है। यदि सुशासन तिहार का उद्देश्य वास्तव में हर वर्ग की समस्याओं का समाधान है, तो यह समस्या उच्च प्राथमिकता में आनी चाहिए।

अब देखने वाली बात यह होगी कि बस्तर प्रशासन, बकावंड जनपद और स्वयं मुख्यमंत्री साय इस आवाज को कितनी संवेदनशीलता से लेते हैं – और क्या वास्तव में शासन की “धरती पर उतरती” नीतियां इन जंगलों के बीच रहने वाले लोगों तक पहुँच पाएंगी?

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